लखनऊ [अवनीश त्यागी]। किसानों को लेकर विपक्ष की चिंता इसी दावे के साथ है कि सरकार मंडियां खत्म कर देगी, जिससे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिल पाएगा। विपक्ष की इन आशंकाओं की काट वह हकीकत कर रही है, जो सरकारी आंकड़े के रूप में भी दर्ज हो चुकी है। कर्ज माफी कर किसान हित से ही अपना सफर शुरू करने वाली उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के चार वर्ष बीतने के बाद आकलन करें तो पाएंगे कि किसानों की किस्मत बदल रही है। सबसे अहम बात यह कि इस कार्यकाल में न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगातार बढ़ोतरी हुई और फसलों की सरकारी खरीद का भी रिकॉर्ड बना।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में किसानों का एक लाख रुपये तक का कर्ज माफी का फैसला लिया था। 86 लाख लघु-सीमांत किसानों का कर्ज माफ किया गया। वहीं, किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य पाने के लिए चार वर्ष में हुए प्रयासों का असर भी अब दिखने लगा है। कोविड संकट काल में रफ्तार भले ही मंद पड़ी, लेकिन विकास का पहिया नहीं थमा। लॉकडाउन के बावजूद 119 चीनी मिलों में पेराई होती रही। वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में ग्रामीण अर्थव्यवस्था किसी हद तक संभली रही। साथ ही आत्मनिर्भरता की ओर भी कदम बढ़े।
66 हजार करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान : योगी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगातार वृद्धि करते हुए खाद्यान्न की रिकॉर्ड खरीद की। किसानों को 66 हजार करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान हुआ। गेहूं व धान के अलावा मक्का, दलहन व तिलहन की सरकारी खरीद होने से बाजार में किसानों को बेहतर दाम मिले। बुलंदशहर के किसान सुभाष यादव का कहना है कि सरकारी क्रय केंद्रों पर पंजीकरण जैसी औपचारिकता तो बढ़ी है, लेकिन किसानों के खातों में सीधे पैसा जाने से राहत मिली है। विभिन्न योजनाओं के तहत करीब 1803 करोड़ रुपये का अनुदान सीधे किसानों के बैंक खातों में पहुंचा है।
शुल्क घटा, सशक्त होती मंडियां : कृषि उपज की बिक्री के लिए मंडियों की उपयोगिता और अधिक बढ़ी है। मंडी शुल्क समाप्त होने के बाद मंडियों में आनलाइन व्यापार को प्रोत्साहित किए जाने का लाभ मिल रहा है। राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना में 125 मंडियों के जरिये 6,81,278.18 लाख रुपये का कारोबार किया गया। मंडी शुल्क एक फीसद घटाया और फल-सब्जी जैसे 45 कृषि उत्पादों को मंडी शुल्क से मुक्त कर दिया गया। चार वर्ष में 220 नए मंडी स्थल चिन्हित किए गए। 27 मंडियों का आधुनिकीकरण भी किया गया। 291 ई-नाम मंडी स्थापना से 87 लाख किसान और 34 हजार कारोबारी जुड़े हैं। मंडी परिषद की आय में करीब 866 करोड़ रुपये वृद्धि का दावा किया जा रहा है।
तकनीक से कृषि विकास को रफ्तार : किसानों को खेती संबंधी नवीनतम जानकारियां व तकनीकी लाभ दिलाने के लिए अनूठे प्रयोग किए गए। किसान पाठशालाओं में 55 लाख किसानों को प्रशिक्षित किया गया और 20 नए कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना की गई। कोरोना काल में किसानों को मोबाइल फोन पर मंडी आदि की सूचनाएं उपलब्ध कराने के साथ ब्लाक स्तर पर वाट्सएप ग्रुप बनाकर सूचनाएं देने की व्यवस्था की गई। कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा के अधिकतम उपयोग को बढ़ावा देने के लिए 50 हजार से अधिक सोलर पंप लगाने का काम जारी है।
भंडारण व परिवहन व्यवस्था सुधारने पर जोर : किसानों की उपज को न्यूनतम नुकसान होने देने की दिशा में काम किया गया। अमरोहा व वाराणसी में मंडी परिषद द्वारा निर्यात बढ़ाने के लिए 26.66 करोड़ रुपये लागत से इंटीग्रेटेड पैक हाउस बनाए गए। 27 मंडियों में कोल्ड व राइपनिंग चैंबर बनाए गए हैं।
बकाया गन्ना मूल्य भुगतान का समाधान जरूरी : गन्ना किसानों का दस हजार करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान समय से न होना समस्या बना है। भुगतान प्रक्रिया को व्यवस्थित करने के साथ ही कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाइयों को प्रोत्साहन देना किसान हित में बेहद जरूरी है।
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